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ईआईएच : निवेशकों की पौ-बारह संभव

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ओबेराय होटल की मालिक कंपनी ईआईएच के शेयर में एक बार फिर जोरदार हलचल शुरु हो गई है। यह हलचल सेबी द्धारा टेकओवर कोड में परिवर्तन किए जाने के तत्‍काल बाद आईटीसी अध्‍यक्ष वाई सी देवेश्वर के बयान के बाद आई। वाई सी देवेश्वर ने साफ कहा है कि हम ईआईएच में निवेश बढ़ाने के बारे में सोच रहे हैं। आईटीसी के चेयरमैन वाई सी देवेश्वर का कहना है कि ईआईएच में और निवेश पर हमारा ट्रेजरी विभाग फैसला करेगा लेकिन मौजूदा भाव पर हिस्‍सेदारी बढ़ाने का यह अच्‍छा मौका है, हम निवेश करेंगे। आईटीसी के पास चार हजार से पांच हजार करोड़ नकदी है। जब हम इसे निवेश करेंगे तो इक्विटी में ही होगा और कारोबार की बात की जाए तो आप जानते ही हैं कि यह होटल्‍स में होगा। सेबी ने नए टेकओवर कोड में कहा किसी कंपनी में निवेश 15 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी किया जा सकता है और इसके बाद ओपन ऑफर लाना होगा। आईटीसी के पास ईआईएच की 14.98 फीसदी इक्विटी है। आईटीसी के पास ईआईएच के शेयर वर्ष 2000 से हैं और यह अटकल हमेशा रही है कि आईटीसी ईआईएच के शेयरधारकों के लिए ओपन ऑफर लाएगी लेकिन कंपनी ने अनेक बार इससे इनकार किया है। ईआईएच में रिलायंस इंडस्‍ट

दानवीर कर्ण और वारेन बफेट एंड बिल गेटस

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दो अमरीकी महाधनाढ़य वारेन बफेट और बिल गेटस भारतीयों को दान की महिमा एवं दान करने के लिए प्रेरित करने पधारे। असल में तो सारा खेल इस दान महिमा के पीछे उनके बिजनैस का ही रहता है। वारेन बफेट को सुनने के लिए साफ कहा गया था कि पहले एक बीमा पॉलिसी खरीदो तो ही उनके कार्यक्रम में आ सकते हैं। दूसरा, बिल गेटस को आम आदमी जानता ही है कि दुनिया भर में जो कंप्‍यूटर चल रहे हैं वे अब उन्‍हें घर बैठे बिठाए खूब कमाई दे रहे हैं। कल की कोई चिंता नहीं है। वारेन बफेट भारतीयों को दान के लिए प्रेरित करते हुए भारत सरकार को भी इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि बीमा क्षेत्र में सीधे विदेशी धन की सीमा 26 फीसदी को खत्‍म कर सौ फीसदी कर दी जाए ताकि उनकी दुकान यहां अच्‍छी तरह जम सके। बिल गेटस के बारे में आम आदमी जानता ही है कि जो कंप्‍यूटर चल रहे हैं वे दिन रात उनकी तिजोरियां भर रहे हैं। भारतीय उद्योगपति इस समय सम्‍पत्ति सर्जन कर रहे हैं जबकि बफेट एवं गेटस यह काम कर चुके हैं। हालांकि, भारतीयों को दान की महिमा के बारे में बताने की जरुरत नहीं है। भारतीय उद्योगपति कारोबार के अलावा दान पुण्‍य का कार्य ढोल नगाड़ा बजाए ब

तय है आज लीबिया...कल कश्‍मीर

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अमरीका ने अफगानिस्‍तान और इराक से शायद कुछ सबक नहीं सीखे। इराक में सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाने के लिए समूची दुनिया से सब कुछ झूठ बोला गया। इराक में परमाणु हथियार है, जैविक हथियार है, सद्दाम सब को मार देंगे। इराक में परमाणु निरीक्षण के बहाने उस पर झूठे आरोप लगाए गए। सारे के सारे अंतरराष्‍ट्रीय निरीक्षक अमरीका की रोटियों पर पलने वाले दलाल थे। यूरोप के इशारों पर नाचने वाले भांड थे। इराक की बेबिलोन संस्‍कृति वाले पूरे इराक को ऐसी आग में झोंक दिया, जो कभी नहीं बुझ सकती। बरसों लगेंगे, फिर से इराक में अमन चैन कायम करने के लिए। अफगानिस्‍तान के राष्‍ट्रपति हमीद करजई तो अमरीका की बैसाखी के बगैर दो दिन नहीं चल सकते। ता‍लिबान आज भी उन्‍हें कुर्सी से उतारकर भाग खड़ा होने पर मजबूर कर देगा। बराक ओबामा के आने के बाद यह आस बंधी थी कि दुनिया में अमन चैन लौटेगा। मार्टिन लूथर किंग से जिस व्‍यक्ति की तुलना की जा रही थी, एक अश्‍वेत जिस तरह से अमरीका का राष्‍ट्रपति बना और वाही वाही की जा रही थी, वह सब अब खत्‍म हुआ। दुनिया को भाषण देने की आड़ में शायद एक कुटिल चाल तैयार की जा रही थी। दुनिया के प्राकृतिक स

सुप्रीम इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर: बड़ी सोच का बड़ा नतीजा

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यदि आज कार्पोरेट इंडिया के बड़े दिग्गज प्रेमजी, मित्तल और नारायण मूर्ति आदि कुछ दान करते हैं तो वह अखबारों और टीवी चैनलों की हैडलाइन बन जाती है। अब हम थोड़ा पीछे चलते हैं। जयपुर के 45 वर्षीय स्व. चन्द्रभान शर्मा, जो एक स्वतंत्रा सेनानी थे, ईस्ट इंडिया कंपनी से बचने के लिए जयपुर से पलायन कर मुंबई के पवई आ गए। सर मोहम्मद यूसुफ से उन्होंने अंधेरी से लेकर कांजुरमार्ग तक 4600 एकड़ जमीन खरीदी। 1947 में जब देश आजाद हुआ तब स्व. शर्मा चाहते थे कि आईआईटी की स्थापना मुंबई में हो, इसके लिए उन्होंने मात्र एक रुपए में अपनी 1700 एकड़ जमीन इस संस्थान की स्थापना के लिए दे दी। इतना ही नहीं 170 एकड़ जमीन उन्होंने एलएंडटी को 35000 रुपए प्रति माह किराए पर दी, जो 99 साल की लीज पर है (38 साल अभी बचे हैं)। यह एक इतिहास है। समय निकलता गया, स्व. शर्मा के पोते भवानीशंकर शर्मा ने अपने दो पुत्रों विक्रम और विकास के साथ मिलकर पवई में अपनी बिजनेस यूनिट और कार्पोरेट ऑफिस बनाया है। भवानीशंकर ने 1969 में बिजनेस के क्षेत्र में प्रवेश किया और 1980 तक वे पवई के पहाड़ी क्षेत्रों में अधिग्रहण और क्रशिंग का काम करने लगे। 1983 में

जयपुर: जमीन-जायदाद के धंधे में काला धन

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राजस्‍थान की राजधानी जयपुर में यदि आयकर विभाग बड़ी मात्रा में काला धन पकड़ना चाहता हो तो जमीन-जायदाद से बेहतर शायद ही कोई स्‍त्रोत हो। यूं तो सरकार की नजर स्विटजरलैंड सहित अनेक देशों में भारतीयों के जमा काले धन पर लगी है लेकिन देश में ही अभी इतना काला धन है, जिसके बाहर आने से सरकार को काफी बड़ा फायदा हो सकता है। जयपुर में यदि आप कोई मकान, प्‍लाट, फ्लैट, कॉमर्शियल प्रॉपर्टी खरीदना चाहते हैं और आपके पास पूरी कीमत नकद में है तब तो आपको शायद ही कोई दिक्‍कत हो और आप जमीन जायदाद आराम से खरीद सकते हैं। हालांकि, इसके तहत प्रॉपर्टी की जो रजिस्‍ट्री होगी वह डीएलसी दर से ज्‍यादा की नहीं होगी, भले ही आपने प्रॉपर्टी इस दर से कितनी ही ऊंची दर पर ली हो। मसलन आप जो घर खरीद रहे हैं मान लीजिए उसकी कीमत 50 लाख रुपए है तो आपको इसका तकरीबन 50 फीसदी हिस्‍सा काले धन के रुप में चुकाना होगा। डीएलसी दर से ज्‍यादा की रजिस्‍ट्री कराने को कोई भी बिकवाल वहां तैयार नहीं है। आप जिस प्रॉपर्टी को खरीदना चाहते हैं उसकी सारी राशि एक नंबर यानी चैक पेमेंट की बात करें तो प्रॉपर्टी डीलर और बिकवाल दोनों उखड़ जाएंगे। वे आपसे